सोमवार, 19 मई 2014

ओ ! कलम तलवार बन जा

ओ ! कलम तलवार बन जा

10 August 2013 at 00:25


कलम तू तलवार बन जा , रक्त शब्दित धार बन जा,
अरि के मस्तक की हो स्याही, वज्र सा प्रहार बन जा .

शब्द लिख जिसमे हो ज्वाला अग्नि भड़के मिला हाला ,
 रोम हो कम्पित पढे जो चन्द्र पहने सूर्य माला .

कदम की धमकार लिख दे, शत्रु हाहाकार लिख दे,
 मन्त्र सी सिध्ही हो इसमें, विजय हो हर बार लिख दे.

 
 

मैं तो हूँ सैनिक धरा का माँ को थोड़ा प्यार लिख दे,
जननी मेरी मात्री भूमि,मृत्यु का सत्कार लिख दे. 

रुक ज़रा तू सोच थोड़ा, शिव हूँ मैं तू नेत्र मेरा , 
शब्द से खुल जाएँ आँखें प्रलय का प्रवाह लिख दे. 

हे ! कलम मैं खडा रन में ,शंख सा आह्वान लिख दे,
चल पडे सुनकर सुदर्शन चक्र से संहार लिख दे.






शत्रु दमनित हो गया जो, काल कवलित हो गया जो , 
माँ की वीणा बज उठेगी, सप्त सुर के तार लिख दे,

प्रिय मिलन को प्रेयसी सी, शब्द माला फिर गुन्थेगी ,
शिशिर में चादर से लिपटी ओस पुष्पों से मिलेगी ,

इंद्र धनुषी अम्बरों पे , मेघ की फुहार होगी .
 अब निमीलित नहीं हैं हम, जागता इंसान लिख दे,

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