शनिवार, 18 अगस्त 2012

सूरज रंग कर ऐसे निकले


सूरज रंग कर ऐसे निकले
जैसे रंगा है अपना तिरंगा
जल पर परछाई लहराए
सुबह सुबह हो विश्व ति- रंगा 


जल में हम स्नान करें
तन मन रंग हो येही तिरंगा
भारत की पहचान इसीसे
सब की जाती में नाम ति-रंगा 


चक्र सुदर्शन अस्त्र हमारा
शेरो की हो अपनी सवारी
एक दहाड़ भयभीत शत्रु हो
मित्र बने सब, जग जीत तिरंगा...वन्दे मातरम् 

बुधवार, 15 अगस्त 2012

रक्तिम स्याही


आज से आरम्भ है , आज से शुरुआत है
रक्त की ही बात हो  , मन में ये उल्लास हो
बात कुछ हो देश आगे, धर्म का परिवेश आगे
मैंने ठाना आज से ही, कलम से  हर बात हो 

बहुत सींचा क्यारियों को
फूल की तो बात मत कर
तितलियों का ठौर कोई
भाडे पे इजाद मत कर 

रंग दे तू शलाका को
बूँद रक्तों से ही धधके
इंधनों में रक्त फून्कूं
सूर्य की लाली भी भभके

कर दिशा को ज्वलित अब तू
ये पिपासा शांत ना हो
शांति पाठों को पढ़ा था
फिर ये आजादी मना तू 

ये कोई त्यौहार है क्या
जर्द चेहरों पे लकीरें
कह रही कुछ दास्ताने
बेबसी की मन  फकीरी

रख जहा पर कदम देगा
धंसेगी धरती तुरत ही
आएगी सीता भी बाहर
राम से कह विजय होगी.....जय हिंद,,,