सोमवार, 30 जून 2014

है तुम्हें धिक्कार जीवन

प्राण में मत आह भरना
है तुम्हें धिक्कार जीवन
झुकना मत गर तुम सही हो
करना तुम प्रतिकार जीवन

साथ मत देंना  विकृत का
लोभ ना  स्वीकार जीवन
कौन है ? मैं बस तुम्हारा !
शब्द अस्वीकार जीवन

एक संयम भाव  है बस
सहन कर पर ना बदलना
लाख उल्काएं गिरे गर
तान शर टंकार जीवन


भ्रमित भौरे का सहारा
छोड़ दे उपकार जीवन
आज जो कल स्वर्ण होगा
लौह बन गुजार जीवन


रविवार, 22 जून 2014

मन कहता है शश्त्र उठा लूं

मन कहता है शश्त्र उठा लूं 
चीर दूं सीना हैवानो का 
जो मैला करते हैं तन को 
कहते हैं की भूल हो गयी 

खबर नहीं है इस मिटटी की 
शत्रु की नजरें तनी हुयी 
कुत्सित मन के ब्यभिचारों से 
व्यथा आज फिर घृणित हुयी



कांधे पर संगीन नहीं है 
नजरों में कायरता है 
बना हुआ है व्याध निरंकुश 
बचपन को अब रौंद रहा 

मन कहता है दावानल बन 
अग्नि प्रवाहित लहरों से 
एक धधक सब ख़ाक मिला दूं 
ज्वलित अस्त्र आवाहन मन

सोमवार, 19 मई 2014

ओ ! कलम तलवार बन जा

ओ ! कलम तलवार बन जा

10 August 2013 at 00:25


कलम तू तलवार बन जा , रक्त शब्दित धार बन जा,
अरि के मस्तक की हो स्याही, वज्र सा प्रहार बन जा .

शब्द लिख जिसमे हो ज्वाला अग्नि भड़के मिला हाला ,
 रोम हो कम्पित पढे जो चन्द्र पहने सूर्य माला .

कदम की धमकार लिख दे, शत्रु हाहाकार लिख दे,
 मन्त्र सी सिध्ही हो इसमें, विजय हो हर बार लिख दे.

 
 

मैं तो हूँ सैनिक धरा का माँ को थोड़ा प्यार लिख दे,
जननी मेरी मात्री भूमि,मृत्यु का सत्कार लिख दे. 

रुक ज़रा तू सोच थोड़ा, शिव हूँ मैं तू नेत्र मेरा , 
शब्द से खुल जाएँ आँखें प्रलय का प्रवाह लिख दे. 

हे ! कलम मैं खडा रन में ,शंख सा आह्वान लिख दे,
चल पडे सुनकर सुदर्शन चक्र से संहार लिख दे.






शत्रु दमनित हो गया जो, काल कवलित हो गया जो , 
माँ की वीणा बज उठेगी, सप्त सुर के तार लिख दे,

प्रिय मिलन को प्रेयसी सी, शब्द माला फिर गुन्थेगी ,
शिशिर में चादर से लिपटी ओस पुष्पों से मिलेगी ,

इंद्र धनुषी अम्बरों पे , मेघ की फुहार होगी .
 अब निमीलित नहीं हैं हम, जागता इंसान लिख दे,

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