प्राण में मत आह भरना
है तुम्हें धिक्कार जीवन
झुकना मत गर तुम सही हो
करना तुम प्रतिकार जीवन
साथ मत देंना विकृत का
लोभ ना स्वीकार जीवन
कौन है ? मैं बस तुम्हारा !
शब्द अस्वीकार जीवन
एक संयम भाव है बस
सहन कर पर ना बदलना
लाख उल्काएं गिरे गर
तान शर टंकार जीवन
भ्रमित भौरे का सहारा
छोड़ दे उपकार जीवन
आज जो कल स्वर्ण होगा
लौह बन गुजार जीवन
मन कहता है शश्त्र उठा लूं
चीर दूं सीना हैवानो का
जो मैला करते हैं तन को
कहते हैं की भूल हो गयी
खबर नहीं है इस मिटटी की
शत्रु की नजरें तनी हुयी
कुत्सित मन के ब्यभिचारों से
व्यथा आज फिर घृणित हुयी
कांधे पर संगीन नहीं है
नजरों में कायरता है
बना हुआ है व्याध निरंकुश
बचपन को अब रौंद रहा
मन कहता है दावानल बन
अग्नि प्रवाहित लहरों से
एक धधक सब ख़ाक मिला दूं
ज्वलित अस्त्र आवाहन मन
कलम तू तलवार बन जा , रक्त शब्दित धार बन जा,
अरि के मस्तक की हो स्याही, वज्र सा प्रहार बन जा .
शब्द लिख जिसमे हो ज्वाला अग्नि भड़के मिला हाला ,
रोम हो कम्पित पढे जो चन्द्र पहने सूर्य माला .
कदम की धमकार लिख दे, शत्रु हाहाकार लिख दे,
मन्त्र सी सिध्ही हो इसमें, विजय हो हर बार लिख दे.
मैं तो हूँ सैनिक धरा का माँ को थोड़ा प्यार लिख दे,
जननी मेरी मात्री भूमि,मृत्यु का सत्कार लिख दे.
रुक ज़रा तू सोच थोड़ा, शिव हूँ मैं तू नेत्र मेरा ,
शब्द से खुल जाएँ आँखें प्रलय का प्रवाह लिख दे.
हे ! कलम मैं खडा रन में ,शंख सा आह्वान लिख दे,
चल पडे सुनकर सुदर्शन चक्र से संहार लिख दे.
शत्रु दमनित हो गया जो, काल कवलित हो गया जो ,
माँ की वीणा बज उठेगी, सप्त सुर के तार लिख दे,
प्रिय मिलन को प्रेयसी सी, शब्द माला फिर गुन्थेगी ,
शिशिर में चादर से लिपटी ओस पुष्पों से मिलेगी ,
इंद्र धनुषी अम्बरों पे , मेघ की फुहार होगी .
अब निमीलित नहीं हैं हम, जागता इंसान लिख दे,
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