सोमवार, 30 जून 2014

है तुम्हें धिक्कार जीवन

प्राण में मत आह भरना
है तुम्हें धिक्कार जीवन
झुकना मत गर तुम सही हो
करना तुम प्रतिकार जीवन

साथ मत देंना  विकृत का
लोभ ना  स्वीकार जीवन
कौन है ? मैं बस तुम्हारा !
शब्द अस्वीकार जीवन

एक संयम भाव  है बस
सहन कर पर ना बदलना
लाख उल्काएं गिरे गर
तान शर टंकार जीवन


भ्रमित भौरे का सहारा
छोड़ दे उपकार जीवन
आज जो कल स्वर्ण होगा
लौह बन गुजार जीवन


2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

कहा भी गया है की सत्तमेव जयते।

यदि हम सही है तो झुकने की कोई जरूरत नहीं है

एक सारगर्वित कविता।

Jitendra Kumar Pandey ने कहा…

कहा भी गया है की सत्तमेव जयते।

यदि हम सही है तो झुकने की कोई जरूरत नहीं है

एक सारगर्वित कविता।