प्राण में मत आह भरना
है तुम्हें धिक्कार जीवन
झुकना मत गर तुम सही हो
करना तुम प्रतिकार जीवन
साथ मत देंना विकृत का
लोभ ना स्वीकार जीवन
कौन है ? मैं बस तुम्हारा !
शब्द अस्वीकार जीवन
एक संयम भाव है बस
सहन कर पर ना बदलना
लाख उल्काएं गिरे गर
तान शर टंकार जीवन
भ्रमित भौरे का सहारा
छोड़ दे उपकार जीवन
आज जो कल स्वर्ण होगा
लौह बन गुजार जीवन
मन कहता है शश्त्र उठा लूं
चीर दूं सीना हैवानो का
जो मैला करते हैं तन को
कहते हैं की भूल हो गयी
खबर नहीं है इस मिटटी की
शत्रु की नजरें तनी हुयी
कुत्सित मन के ब्यभिचारों से
व्यथा आज फिर घृणित हुयी
कांधे पर संगीन नहीं है
नजरों में कायरता है
बना हुआ है व्याध निरंकुश
बचपन को अब रौंद रहा
मन कहता है दावानल बन
अग्नि प्रवाहित लहरों से
एक धधक सब ख़ाक मिला दूं
ज्वलित अस्त्र आवाहन मन