वैसे तो सूरज से हाथ मिलाकर सफ़र शुरू करते हैं और सूरज के अस्त होते ही हम चाँद से रूबरू हो जाते हैं , सूरज तो पूरा का पूरा मिलता है रोज मगर ये चाँद आधा तीहा ही मिल पाता है या फिर पूरा का पूरा गायब , कुछ ऐसा ही हमारे सफ़र की मंजिल का हश्र है ,,,चाँद जैसा ही....अब पूरी बात क्या बोलूँ चाँद और मंजिल से तुलना कर लो ,,,मगर उस मंजिल को सूरज में तब्दील करना है ,,,पूरा का पूरा ही चाहिए .
मेरे सपनो की बारादरी |
जहां पाँव के नीचे जमी नहीं होती
कोई रंग नहीं होता
मगर सूरज से मिलने की चाह
जरूर होती है ,,,भले ही वो दूर हो कहीं
उसके उजाले में सिकुड़े मेरे पंख
पलकों के बंद होते ही खुल जाते हैं
उड़ने लगते हैं पल भर में ही
मेरे सपनो के पंख बहुत तेज हैं
किसी जादूगर की कालीन की तरह
कभी चाँद की मुंडेर पर बैठकर
सूरज को झाँकने की कोशिश
या फिर बादलों में छिपी रोशनी
की तमतमाहट को छूने को व्याकुल
कितनी तेजी से मन भागता है
इन पंखों के सहारे जहां पैरों का कोई काम नहीं
इसीलिए तो सुबह तरोताजा होते हैं हम
ख़्वाबों की तरबियत ही सही कुछ तो है
वही सब जो हम दिन भर तिल तिल कर मरते हैं
वही सब हम ख्वाबों में उड़ उड़ कर जीते हैं
इसीलिए चाँद से सूरज का सफ़र करना है मुझे
















