रविवार, 30 सितंबर 2012

शंख्नादित स्वर कहाँ हुंकार ही हुंकार है

शंख्नादित स्वर कहाँ हुंकार ही हुंकार है

by Suman Mishra on Sunday, 12 August 2012 at 23:56 ·
 
अब कहाँ कौरव की सेना अब कहाँ प्रहार है
शाश्त्र से उत्पन्न उन्वानो की बस ये बाढ़ है
कौन लिखता काव्य दुर्लभ कौन जिम्मेवार है
शंख्नादित स्वर कहाँ हुंकार ही हुंकार है

सिंह की हुंकार कह लो गूँज कर फिर चुप हुयी
खरहरों की छलांगों में कोई तपस्या भंग हुयी
एक मंथन शब्द का पंचांग पर लिख वेद सा
कुंडली से भाग्य रेखा कही पर मध्यम  हुयी ?



कितनी भटकन , कितनी उलझन ,
उलझा मानव , पथ भ्रमित है
कौन सच्चा कौन झूठा
कौन अंतिम द्वार तक है ?


शब्दों में बस धुंध ही है
शश्त्रों में अब धार कहाँ
जंग लग कर टूटते हैं
अब ये जंगे आजादी कहाँ





ख़तम कर दो नस्ल को,जो दासता को पालती
ह्रदय की धड़कन नहीं है,रुख पे है पर्दा डालती

नसों में पानी नहीं रक्तिम सी आभा ज्वलित हो,
बूँद गिर कर धरा पर वीरों की गाथा गठित हो ,  


हर प्रहर धिक्कार मन को,जज्बे को बाहर आने दे

सिक्के के पहलू हो अपने, हर दिशा अपनाने दे
जिस तरफ क़दमों का रुख बस वो जमी अपनी ही हो
वक्त की पुकार सुन , दुश्मन को अब थर्राने दे 

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