कुछ अजीब सा लगता है जब.........
by Suman Mishra on Thursday, 30 August 2012 at 00:39 ·

सुबह की खुमारी पूजा के बाद की
पहियों पे दौडती जिदगियाँ
हर दिशा में गूंजता शोर अजीब अजीब सा
उनके बीच में ठेले को धकेलती हुयी
वो सूखी सी फल बेचने वाली
कुछ अजीब सा लगता है......


कभी कभी कुछ अलग सा इंसान
कमीज की बाहें झूली हुयी सी
ओह ! शायद कटी हुयी थी
मगर वो बेखबर सा सड़कों पर फिरता हुआ
कुछ अजीब सा लगता है

रात भर तूफानी बारिश के बाद
सुबह की चमकीली धुप में चमकती पत्तियाँ
मगर देर रात से बूँदें अटकी पेड़ों पर
क्यों गिरी नहीं अब तक
आसमान से तो बडे वेग से गिरी थी
अब किसके इन्तजार में हैं
कुछ अजीब सा नहीं लगता ?

Modern आर्ट की प्रदर्शनी
आड़े तिरछी रेखाओं पर framed तसवीरें
लोग जाने कितने अर्थ निकालते हुए
क्या किसी ने रंगों की बोतल उलट दी थी ?
या रंगों भरी कहानी लिख दी थी
ध्यान से देखी हाथों की रेखाओं सी
जीवन के अलग अलग रंगों को बयान करती हुयी
मगर इंसान इन रंगों को पढने में सछम है
खुद के अन्दर की उथल पुथल को क्यों नहीं ?
कुछ भी ठीक नहीं , बड़ा अजीब सा लगता है
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